अगले छः महीनों तक जोशीमठ में होगी भगवान नारायण की पूजा अर्चना

@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (19 नवम्बर 2022)

चमोली: विश्व प्रसिद्ध बद्रिकाश्रम के कपाट बंद होने के बाद छ माह बद्रीनाथ की पूजा नर के द्वारा की जाती है, जिन्हें हम रावल कहते हैं। रावल दक्षिण भारत के लंवुदरीपाद ब्राह्मण परिवार से होते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित सनातन धर्म की परंपरा पुनर्स्थापना के समय रावल प्रथा शुरू की गई थी, वह आज भी प्रचलित है।

आज बद्रीनाथ में भगवान का सभी श्रृंगार को उतारा जाता है और माणा गांव की कुवारी कन्या के द्वारा तैयार किया गया भगवान विष्णु के लिए कंबल बनायी जाती है, जो एक ही दिन में तैयार की जाती है। मोल्फा परिवार इस कंबल को तैयार करते हैं। भगवान की पूरी मूर्ति पर घी का लेप किया जाता है और महालक्ष्मी की मूर्ति को लक्ष्मी के मंदिर से बद्रीनाथ के रावल स्त्री भेष में भगवती महालक्ष्मी को विष्णु के बाएं भाग में रख देते हैं। उससे पहले लक्ष्मी जी के जैठ उद्धव की मूर्ति को बद्रीनाथ मंदिर से पहले ही पालकी में बाहर ले आते हैं।

6 माह उद्धव जी की पूजा नरसिंह मंदिर जोशीमठ की जाती है, जबकि योग बद्री पांडुकेश्वर में भगवान कुबेर घंटाकरण एवं नारायण की पूजा की जाती है। पंच बद्री के दो बद्री मुख्य रूप से बद्रिकाश्रम भविष्य बद्री के कपाट शीतकाल में बंद हो जाते हैं, जबकि अन्य पंच केदार के 3 मंदिर वर्ष भर खुले रहते हैं, जिसमें योग बद्री पांडुकेश्वर, ध्यान बद्री उरगम, बृद बद्री अणिमठ के कपाट शीतकाल के लिए बंद नहीं होते हैं।

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