बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व बद्रीनाथ यात्रा की शुभ शुरुआत के लिए आयोजित हुआ तिमुंडिया मेला,मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़।

@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (04 मई 2024)

जोशीमठ। धार्मिक पर्यटन और आध्यात्मिक नगरी के साथ साथ भगवान नृसिंह देवता की पतित पावनी भूमि जोशीमठ में भगवती दुर्गा के वीर तिमुंडिया मेला सम्पन हुआ। इस देव उत्सव में शरीक होकर मां दुर्गा और वीर देवता के दर्शन और आशीर्वाद लेने उमड़ा भक्तो का सैलाब, दरअसल श्री बदरीनाथ धाम की सुखद और निर्विधन यात्रा के लिए होती है यात्रा बेस कैंप जोशीमठ में तिमुंडिया वीर की पूजा अर्चना श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के कुछ दिन पहले शनिवार को आयोजित किया जाता है यह लोक आस्था और श्रद्धा परम्परा का देवोत्सव। मां दुर्गा और नरसिंह भगवान के मंदिर प्रांगण में भक्तों ने झमाझम बारिश की फुहारों और तेज हवाओ के बीच दाकुंडी झमेलों के साथ मां भगवती के वीर तिमुंडिया से की छेत्र की खुशहाली समृद्धि के साथ श्री बदरीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना की।

लोक मान्यताओं के अनुसार तिमुंडिया वीर की है ये कथा—-

लोक मान्यताओं के अनुसार तिमुडिया वीर तीन सिरों वाला वीर है एक सिर से दिशा का अवलोकन दूसरे से मांस का सेवन व तीसरे से शास्त्र का अध्ययन प्राचीन समय में जब लोग बदरीनाथ की यात्रा पर आते थे तो यह वीर प्रतिदिन कई मनुष्यों का भक्षण कर लेता था जिसका ह्यूणा आदि गांवों के आसपास बड़ा आतंक था। लोगों के अनुरोध पर मां दुर्गा ने इस वीर से कहा कि तुम्हारी साल भर में पूजा होगी ओर तुम लोगों की हत्या नही करोगे। दूसरी मान्यताओं के अनुसार जब मां दुर्गा देवरा यात्रा पर जोशीमठ आयी तो तिमुडिया वीर ने इस यात्रा काल में भी अपना आतंक जारी रखा मां दुर्गा ने भक्तों की रक्षा के लिए इस वीर के दो सिर काट दिये जो पहला सिर काटा वो उर्गम घाटी के आसपास गिरा और हिसवा राक्षस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी उर्गम घाटी में भूमियाल घंटाकर्ण के साथ हिंसवा पावे की पूजा होती है।

दूसरा सेलंग के आसपास गिरा जो पट्पटवा वीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ जैसे ही मां दुर्गा तीसरे सिर को काटने लगी तिमुडिया वीर देवी की शरण में चला गया तब मां ने उससे कहा कि तुम नर बलि नही करोंगे तुम्हें हर साल भरपूर पूजा दी जायेगी। तब से नृसिंह भगवान मन्दिर में इस वीर का स्थान है.ओर हर साल बदरीनाथ के कपाट खुलने से पूर्व यह मेला शनिवार को बड़े ही हर्षोल्लास से आयोजित होता है इस वीर का अवतारित पश्वा सवा मण चावल चार किलो गुड तीन घड़ा पानी तामसिक भोजन करता है.देवता शान्त होने के बाद एक सेर आटे का रोट व सवा सेर चावल की खिचडी खाता है मां दुर्गा व दाणी के अवतारित पश्वा भी इस वीर के साथ रहते है जो वीर को अपने नियंत्रण में रखते हैं। धन्य हैं आदि गुरु शंकराचार्य जी की यह आध्यात्मिक नगरी जोशीमठ की यह पावन धरती जहां की संस्कृति को विज्ञान भी चुनौती नही दे सकता यह पौराणिक परम्परा संस्कृति इंसान को सोचने के लिए विवश कर देती है ओर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। यही कारण है की आज भी वीर देवता के इस देवोत्सव में शरीक होकर वीर देवता का प्रसाद और आशीर्वाद लेने के लिए क्या वीआईपी और क्या अधिकारी देश के कोने कोने से जिन्होंने वीर देवता के उत्सव के बारे में सुना होगा इस उत्सव में पहुंचते है, वहीं मेले में आज खराब मौसम के बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी।

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