श्रीदेव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय के पण्डित ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेश की गणित परिषद द्वारा “प्राचीन भारतीय गणित और उसका सार्वभौमिक प्रभाव” विषयक सेमिनार आयोजित…..
@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (01 सितंबर 2024)
ऋषिकेश। श्रीदेव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय के पण्डित ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेश की गणित विभागीय परिषद् द्वारा रूसा सभागार में “प्राचीन भारतीय गणित और उसका सार्वभौमिक प्रभाव विषय” पर एक दिवसीय सेमिनार आयोजित की गया | सेमिनार का उद्घाटन परिसर निदेशक प्रो एम एस रावत, कला संकायाध्यक्ष प्रो डी सी गोस्वामी, वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रो कंचनलता सिन्हा, गणित विभागाध्यक्ष प्रो अनीता तोमर ने दीप प्रज्जवलित कर किया|
अपने स्वागत सम्बोधन में गणित विभागाध्यक्ष प्रो. अनीता तोमर ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय गणित ने न केवल भारत की विज्ञान और गणित की प्रगति को दिशा दी, बल्कि संपूर्ण विश्व में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। भारतीय गणित की शुरुआत वैदिक युग से मानी जाती है, जब गणितीय अवधारणाएं जीवन के धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी थीं। उन्होंने कहा कि शून्य की अवधारणा भारतीय गणित की सबसे महत्वपूर्ण देन मानी जाती है। इसे आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त जैसे महान गणितज्ञों ने विकसित किया। शून्य का उपयोग गणना में क्रांतिकारी बदलाव लाया, जिससे आधुनिक गणित और कंप्यूटर विज्ञान का विकास संभव हुआ। प्राचीन भारतीय गणित का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। भारतीय गणितीय सिद्धांतों और कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ, और फिर वे यूरोप और अन्य पश्चिमी देशों में पहुंचे। इन सिद्धांतों ने पश्चिमी गणित के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आधुनिक गणित की प्रगति को दिशा दी। प्रो. तोमर ने कहा, “प्राचीन भारतीय गणित ने विश्व को अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की खोज से लेकर त्रिकोणमिति तक, हमारे पूर्वजों ने गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की। आज की यह संगोष्ठी हमारे छात्रों को इस ज्ञान को आधुनिक समस्याओं के समाधान में लागू करने के लिए प्रेरित करेगी। हमारा लक्ष्य है कि हम इस प्राचीन ज्ञान को नए युग की चुनौतियों से जोड़ें और गणित के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करें।” संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य प्राचीन भारतीय गणित की समृद्ध विरासत को उजागर करना और आधुनिक वैज्ञानिक चुनौतियों के समाधान में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालना था। यह संगोष्ठी हमारे छात्रों और शोधार्थियों को प्राचीन भारतीय गणित की गहराई और व्यापकता से परिचित कराने का एक अद्वितीय अवसर है। मुझे विश्वास है कि यह आयोजन न केवल ज्ञानवर्धक होगा, बल्कि भविष्य के शोध और नवाचार के लिए भी प्रेरणादायक साबित होगा।
वक्ताओं ने शून्य की अवधारणा, दशमलव प्रणाली और पाइथागोरस प्रमेय जैसे भारतीय गणितीय अवधारणाओं के महत्व पर चर्चा की। इसके अलावा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स जैसे आधुनिक तकनीकी क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय गणित के अनुप्रयोगों पर भी विचार-विमर्श किया गया।
कार्यक्रम अध्यक्ष परिसर निदेशक प्रो एम एस रावत ने उपस्थित प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय गणित हमारे सांस्कृतिक और वैज्ञानिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका अध्ययन न केवल हमारे अतीत की समझ को गहरा करता है, बल्कि यह भविष्य के गणितीय और वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए नई संभावनाओं का मार्ग भी प्रशस्त करता है। भारतीय गणितीय धरोहर से हमें गर्व करना चाहिए और इसे सहेजने व आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए। भारतीय गणितज्ञों, विशेषकर आर्यभट्ट और भास्कराचार्य, ने त्रिकोणमिति और ज्यामिति के क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। उनके द्वारा दिए गए गणितीय सूत्र और प्रमेय आज भी प्रासंगिक हैं और आधुनिक गणित की नींव का हिस्सा हैं। उन्होंने गणित विभाग द्वारा आयोजित किये जा रहे अकादमिक एवं शोध कार्यक्रमों की सराहना करते हुए सभी विभागों से इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा|
विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. एन.के. जोशी ने शुभकामनाएँ भेजीं और कहा, “प्राचीन भारतीय गणित की समृद्ध विरासत न केवल हमारे देश के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें इस ज्ञान को न केवल संरक्षित करना चाहिए, बल्कि इसे आगे बढ़ाने और विकसित करने का प्रयास भी करना चाहिए।”
सेमिनार में गणित विभाग के शोध, स्नातकोत्तर एवं स्नातक कक्षा के छात्र छात्राओं द्वारा प्राचीन भारतीय गणित और उसका सार्वभौमिक प्रभाव विषय पर पॉवर पॉइंट प्रस्तुतीकरण दिए गए|
समारोह के अंत में, परिसर निदेशक तथा उपस्थित अतिथियों ने गणित परिषद द्वारा आयोजित विभिन्न गणितीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पुरस्कार वितरित कर प्रमाण पत्र प्रदान किये|
निबंध प्रतियोगिता में एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की हर्षिता अग्रवाल एवं एम एस सी चतुर्थ सेमेस्टर की अंजली रावत को प्रथम, एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की साक्षी, लकी शर्मा तथा नितेश बर्थवाल को द्वितीय एवं बी एस सी द्वितीय सेमेस्टर की प्रेरणा सिंह, बी एस सी चतुर्थ सेमेस्टर के आदित्य चौहान तथा सार्थक सेमवाल, एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर के यशवर्धन को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया|
पोस्टर प्रतियोगिता में बी एस सी चतुर्थ सेमेस्टर के सार्थक सेमवाल को प्रथम, एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की लकी शर्मा को द्वित्तीय तथा बी एस सी षष्ठम सेमेस्टर की अमिति थापा को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया|
भाषण एवं प्रस्तुतीकरण प्रतियोगिता में एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की लकी शर्मा, शोध छात्रा मोनिका एवं शोध छात्र नितिन को प्रथम तथा एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की हर्षिता अग्रवाल, शोध छात्रा शिवानी एवं सजल पाल को द्वित्तीय एवं शोध छात्र कौशल कुमार, मनीष, एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की साक्षी को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया|
क्विज प्रतियोगिता में एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की लकी शर्मा, साक्षी, बी एस सी चतुर्थ सेमेस्टर के आदित्य प्रताप सिंह एवं बी एस सी द्वित्तीय सेमेस्टर की तनीषा को प्रथम, एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की प्रेरणा, बी एस सी द्वितीय सेमेस्टर की प्राची शर्मा, सुधांशु एवं देवेंद्र को द्वितीय तथा एम एस सी द्वितीय सेमेस्टर की हर्षिता अग्रवाल एवं सोनल नौटियाल, बी एस सी द्वितीय सेमेस्टर के अंजनी को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया|
गणित विभाग की प्रो दीपा शर्मा ने सभी को सम्बोधित करते हुए उपस्थित अतिथियों का आभार ज्ञापित किया| सेमिनार में गणित विभाग के डॉ गौरव वार्ष्णेय तथा डॉ पवन जोशी ने भी प्रतिभागियों को प्राचीन भारतीय गणित विषय पर जानकारी प्रदान कर सम्बोधित किया|
इस अवसर पर प्रो एस पी सती, प्रो मनोज यादव, प्रो विद्याधर पाण्डे, प्रो संगीता मिश्रा, प्रो हेमलता मिश्रा, प्रो पूनम पाठक, प्रो कल्पना पंत, प्रो नीता जोशी, प्रो बी पी बहुगुणा, प्रो नवीन शर्मा, प्रो आशीष शर्मा, प्रो हितेंद्र सिंह, प्रो दिनेश शर्मा, डॉ विभा कुमार, डॉ सीमा बैनीवाल, डॉ श्रीकृष्ण नौटियाल, डॉ एस के कुड़ियाल, डॉ अशोक मैंदोला, डॉ हेमन्त परमार, डॉ नेहा भट्ट, संजीव सेमवाल सहित गणित विषय के छात्र छात्रा उपस्थित रहे|
यह कार्यक्रम भारतीय गणितीय विरासत के प्रति गहरी सराहना को बढ़ावा देने और वैश्विक वैज्ञानिक सोच को आकार देने में इसके महत्व को रेखांकित करने में सफल रहा।