भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्यावरण चेतना” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन……

@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (28 अप्रैल 2025)
कर्णप्रयाग। राजकीय महाविद्यालय नंदासैंण एवं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नागनाथ पोखरी के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 28 एवं 29 मार्च 2025 को “भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्यावरण चेतना” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में प्रदेश एवं देश के प्रसिद्ध महाविद्यालयों के विभिन्न शैक्षणिक पृष्ठभूमि से आए विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित पर्यावरण चेतना को समझना और इस चेतना को स्वयं में प्रदीप्त करते हुए समकालीन पर्यावरण संकटों के समाधान में उपयोग करना था। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. विश्वेश वाघमे ने भारतीय संस्कृति, दर्शन और धार्मिक परंपराओं में निहित पर्यावरण संबंधी विचारों को प्रस्तुत किए। विशिष्ट वक्ता डॉ. हरीश बहुगुणा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए सकारात्मक पहलुओं पर सारगर्भित चर्चा की। इसके साथ ही, भारतीय परंपरा में पर्यावरण के साथ तादात्म्य एवं सामंजस्य बनाए रखने पर जोर दिया गया।
संरक्षक एवं मुख्य अतिथिः संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक डॉ. अंजू अग्रवाल, निदेशक, उच्च शिक्षा, उत्तराखंड, मुख्य अतिथि डॉ. वी. एन. खाली, प्राचार्य, राजकीय स्नातकोतर महाविद्यालय कर्णप्रयाग एवं संरक्षक के रूप में डॉ. बी. के. सिंह, प्राचार्य, राजकीय महाविदयालय नंदासैंण एवं डॉ. संजीव कुमार जुयाल, प्राचार्य, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नागनाथ पोखरी रहे। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. नीटू दत्त नौटियाल एवं सह-संयोजक श्री प्रवीण कुमार मैठाणी ने इस आयोजन के संयोजन एवं संचालन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंच का सफलता पूर्वक संचालन डॉ. जय प्रकाश आर्य ने किया।
संगोष्ठी के उद्देश्यः इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित पर्यावरण चेतना को जागरूक करना था। भारतीय दर्शन, संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के महत्व को पुनः समझना और समाज में इसके प्रति जागरूकता फैलाना था। साथ ही, समकालीन पर्यावरणीय संकटों जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता संकट से निपटने के लिए भारतीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत करना था। इस संगोष्ठी का एक और उद्देश्य भारतीय परंपराओं का समकालीन संदर्भ में उपयोग कर पर्यावरणीय संकटों के समाधान के लिए एक ठोस मार्ग प्रशस्त कराना था।
मुख्य गतिविधियाँ और चर्चाः संगोष्ठी में विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय ज्ञान परंपराओं और धर्म में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचारों पर विस्तृत चर्चा की गई। विद्वानों ने भारतीय संस्कृति और दर्शन से जुड़े विचारों को प्रस्तुत किया, जिनमें पर्यावरणीय संकटों के समाधान के लिए स्थायी और दीर्घकालिक दृष्टिकोण सुझाए गए। संगोष्ठी ने पर्यावरण चेतना को समाज में जागरूकता के रूप में फैलाने का प्रयास किया, ताकि आम नागरिक इस दिशा में सक्रिय रूप से योगदान कर सकें।
समाप्ति और धन्यवाद ज्ञापनः संगोष्ठी के समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों और सहयोगियों का धन्यवाद ज्ञापन किया गया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित पर्यावरण चेतना न केवल भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है, अपितु यह वैश्विक पर्यावरण संकटों से निपटने में भी सहायक हो सकती है। संगोष्ठी में सुझाए गए पर्यावरणीय चेतना एवं संरक्षण के तत्व विश्वभर में प्रभावी हो सकते हैं।