अंधाधुंध विकास का बोझ उठाने में असक्षम धरती

@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (14 जनवरी 2023)

जोशीमठ। शिवालिक हिमालय की गोद मे बसा एक खूबसूरत पहाड़ी शहर उत्तराखंड का जोशीमठ (Joshimath) वहाँ पिछले कई दशकों से चल रहे अवैज्ञानिक विकास व निर्माण कार्य के कारण उत्पन्न भौगोलिक आपदा का शिकार हो रहा है।

पवित्र तीर्थ स्थल बद्रीनाथ और हेमकुंट साहिब जाने के रास्ते का द्वार कहा जाने वाला और भारत चीन सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए बेस-कैंप के लिए प्रसिद्ध जोशीमठ (Joshimath) अभी असामान्य भौगोलिक गतिविधियों के कारण चर्चा में है।

जोशीमठ (Joshimath) के ज्यादातर इलाकों से लगातार जमीन धंसने और उसके कारण घरों और मकानों में बड़ी दरारें उत्पन्न होने के मामले सामने आ रहे हैं। इसके कारण लोग घर होते हुए भी बेघर होकर कड़ाके की ठंड के बाद भी सड़कों पर या अस्थायी ठिकानों पर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं।

जोशीमठ (Joshimath) शहर में अभी तक कुल 561 घरों से दीवारों में दरार और भूस्खलन के मामले सामने आए हैं। इसे लेकर वहां के स्थानीय निवासी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही बड़ी संख्या में लोग पलायन भी कर रहे हैं।

जोशीमठ की भगौलिक संरचना और पर्यटन-महत्व

जोशीमठ (Joshimath) में आखिर भूस्खलन और उस से उत्पन्न अन्य खतरों को समझने के लिए हमें वहाँ की भौगोलिक स्थिति तथा यहाँ के पर्यटन महत्व को समझना होगा।

जोशीमठ शहर तीव्र प्रवाह वाले धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम, विष्णुप्रयाग के पास बने रिज (Ridge:- पहाड़ी उन्नत स्थल या उठा हुआ भूभाग) पर समुद्रतल से 6000 फीट की ऊंचाई स्थित है।

आज जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन आदि को लेकर बेशक एक घबराहट सरकार से लेकर मीडिया तक, वहाँ के स्थानीय निवासी से लेकर देहरादून और दिल्ली में बैठे सरकार के प्रतिनिधियों तक देखने को मिल रही है लेकिन इसकी चेतावनी की घंटी आज से कई दशक पहले दिया गया था।

1976 में सरकार द्वारा बनाये गए मिश्रा कमीशन (Mishra Commission Report, 1976) ने यह बात रेखांकित की थी कि जोशीमठ (Joshimath) शहर कालांतर में कभी हुए भूस्खलन के मलवे (Landslide Debris) के ऊपर बसा हुआ है जिसकी भार उठाने की क्षमता कम होती है। इस कमीशन के रिपोर्ट में भविष्य में ऐसी घटना के होने की संभावना व्यक्त की गई थी जिसमें जान-माल का भयंकर नुकसान होने के आसार बताए गए थे।

दूसरा, ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय मार्ग (NH-7) पर स्थित यह पहाड़ी शहर बाहर से आने वाले सैलानियों और बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक रात्रि-विश्राम की जगह है। औली, हेमकुंट साहिब, फूलों की घाटी आदि कई पर्यटन स्थल जाने वालों के लिए यह एक रात्रि-विश्राम की जगह है। इसलिए यहाँ होटल, गेस्ट हाउस, तथा अन्य निर्माण-कार्य पिछले कुछ दशकों में तेजी से हुए है।

इसके अलावे कई अन्य विकास कार्य भी जारी हैं। यहाँ NTPC की परियोजना तपोवन प्रोजेक्ट जारी है। उत्तराखंड के चार धाम को एक्सप्रेसवे से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना में जोशीमठ भी शामिल है।

इस निर्माण के दौरान यहाँ की पहाड़ों को विस्फोटको से तोड़ा जाता है। इनके कारण उत्पन्न तरंगों से पहाड़ के अन्य चट्टानों में भी अंतर-आण्विक दूरी पर प्रभाव पड़ता है और चट्टानें कमजोर हो जातीं हैं।

Joshimath की आपदा के पीछे की वैज्ञानिक वजह

अब उपरोक्त बिंदुओं को सिलसिलेवार तरीके से ध्यान में रखा जयें तो जोशीमठ में आज जो भी आपदा घटित हो रही है, उसे आसानी से समझा सकता है।

कालांतर में हुए भूस्खलन के मलवे (Landslide Debris) से बने जिस उच्च-भूभाग (Ridge) पर यह शहर बसा है, उसमें धौलीगंगा और अलकनंदा नदी के पानी मे तेज बहाव के कारण कटाव ( Land Erosion) हो रहा है। पानी जमीन के अंदर जा रहा है और इसके कारण वहां भूस्खलन हो रहे हैं।

Wadia Institute of Himalayan Geology के 2022 के सर्वे के मुताबिक, यहाँ के चट्टान अत्याधिक अपक्षयित (Weathered) होती हैं और मानसून के दौरान व नदी के प्रवाह जल के कारण पानी से संतृप्त होने से इनके संयोजी प्रवृत्ति (Cohesive tendency) में कमी आ जाती है। इस से भूस्खलन की घटना बढ़ जाती है।

साथ ही, अतीत में हुए भूस्खलन के मलवे (Landslide Debris) से बने भूभाग की सहन क्षमता (Bearing Capacity) कम होती है। इसलिए पिछले कई दशक में तेजी से हुए भवन, होटल, सड़क आदि के निर्माण-कार्यों और पनबिजली संयत्र (Hydro-Electric Plant) जैसी विकास परियोजनाओं के बोझ को जोशीमठ (Joshimath) की धरती अपने संरचना के कारण और बोझ उठाने में असक्षम है।

Joshimath में निर्माण कार्यों पर तुरंत लगे रोक
हिंदी में एक प्रचलित कहावत है- “एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा…” मतलब यह कि कोई एक समस्या पहले से ही हो, दूसरा और कुछ ऐसा हो जाए जिस से समस्या दुगनी हो जाए।

Joshimath के जमीन की भौगोलिक संरचना के कारण खतरे की संभावना हमेशा बरकरार थी, ऊपर से विकास की अंधी दौड़ में मानवीय कृत्यों ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। सैकड़ो लोग घर होते भी बेबस और मजबूर होकर बेघर हो गए हैं।

सच है कि प्रकृति के कुप्रभाव से निपटना इंसान के वश की बात नहीं है, लेकिन इंसान की जिन हरकतों से प्राकृतिक-असंतुलन पैदा हो रहे हैं, उसे तो रोका ही जा सकता है। उस इलाके में हो रहे हर तरह के विकास परियोजनाओं और निर्माण कार्यों को किसी भी हाल में रोकना होगा।

साथ ही वहाँ के जल निकासी व्यवस्था (Drainage System) को दुरुस्त करना चाहिए ताकि चट्टानों का पानी के करण कम से कम अवक्षरण हो। बड़ी संख्या में वृक्षारोपण से भी फायदा पहुँच सकता है जिस से वहाँ की मिट्टी आपस मे जुड़ी रहें।

यह वक़्त सिविल सोसाइटी और केंद्र व राज्य की सरकारों को एक साथ आकर वहाँ के हज़ारों लोगों की जिंदगी और रोजी रोटी बचाने का प्रयास करना चाहिए।

न सिर्फ जोशीमठ बल्कि अनेकों अन्य ऐसे छोटे बड़े शहर जो हिमालय की खूबसूरत वादियों और पहाड़ों में बसे हैं, उनमें एक निष्पक्ष वैज्ञानिक अध्ययन की सख्त आवश्यकता है, जिस के आधार पर ही आगे के निर्माण कार्य पर विचार हो वरना प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ महंगा पड़ेगा।

 

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