सतत विकास और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर कार्यशाला का हुआ आयोजन…..

@हिंवाली न्यूज़ ब्यूरो (14 सितंबर 2024)

ऋषिकेश। 

14 सितंबर 2024 , श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के संकाय विकास केंद्र द्वारा उत्तराखंड, आज “एनईपी 2020 के अनुरूप सतत विकास और शिक्षा की भूमिका” विषय पर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में देश भर के 100 शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं ने भाग लिया।

श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर एन.के. जोशी जी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे शैक्षिक दृष्टिकोण में एक युगांतरकारी परिवर्तन का प्रतीक है। यह न केवल समावेशी और न्यायसंगत, बल्कि दूरदर्शी और वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक एक शिक्षा प्रणाली की कल्पना करती है। हमारा लक्ष्य ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना है जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रणालियों की परस्पर निर्भरता को समझते हों।” उन्होंने आगे कहा, “यह कार्यशाला विचारों की एक कुठाली, संवाद का एक मंच और कार्रवाई के लिए एक प्रक्षेपण पट है। हमें न केवल एनईपी 2020 को समझना और लागू करना है, बल्कि सतत विकास की गतिशील चुनौतियों को पूरा करने के लिए अपनी प्रथाओं को निरंतर विकसित करना है।” उन्होंने आगे बताया, “हम डिजिटल साक्षरता और तकनीकी एकीकरण पर विशेष जोर दे रहे हैं। इससे हम विकास की चुनौतियों को तेजी से पार कर सकेंगे और टिकाऊ विकास के मुद्दों के लिए नवीन समाधान खोज सकेंगे।”

कार्यशाला की आयोजक, फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर की निदेशक डॉ. अनीता तोमर ने इस अवसर पर कहा, “हमारा उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा भविष्य बनाना है जो न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी टिकाऊ हो। एनईपी 2020 हमें इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक ठोस ढांचा प्रदान करती है।” उन्होंने जोर देकर कहा, “हमें ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो छात्रों को न केवल रोजगार के लिए तैयार करे, बल्कि उन्हें रोजगार सृजनकर्ता बनने के लिए सशक्त बनाए। यह सतत आर्थिक विकास की कुंजी है।””यह कार्यशाला हमें एनईपी 2020 और सतत विकास के लक्ष्यों के बीच तालमेल बैठाने का अवसर प्रदान करती है। हमारा लक्ष्य ऐसे शिक्षक तैयार करना है जो छात्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना जगा सकें।”

कार्यशाला के प्रमुख वक्ताओं में से एक, के.एस.यू.बी. कॉलेज ऑफ टीचर एजुकेशन, भंजा नगर, गंजम (ओडिशा) के प्रोफेसर और प्रिंसिपल डॉ. बिमल चरण स्वाइन ने कहा, “एनईपी 2020 शिक्षक प्रशिक्षण में एक नया आयाम जोड़ती है। हमें ऐसे शिक्षक तैयार करने की आवश्यकता है जो न केवल अपने विषय में दक्ष हों, बल्कि सतत विकास के सिद्धांतों को भी समझते और लागू करते हों। यह नीति हमें इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है।”
क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (एनसीईआरटी), भुवनेश्वर के पूर्व प्रोफेसर और रिसर्च डीन, प्रोफेसर भुजेंद्र नाथ पांडा ने अपने संबोधन में कहा, “सतत विकास के लिए शिक्षा में अनुसंधान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। एनईपी 2020 हमें ऐसे शोध को प्रोत्साहित करने का अवसर देती है जो न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा दे, बल्कि हमारे समाज और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हो। हमें ऐसे शोध पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो स्थानीय समस्याओं के लिए वैश्विक समाधान प्रदान करे।”

संकाय विकास केंद्र के उप निदेशक डॉ. अटल बिहारी त्रिपाठी ने सभी प्रतिभागियों और वक्ताओं का धन्यवाद करते हुए कहा, “यह कार्यशाला हमारे लिए एक नई शुरुआत है। यहां से प्राप्त ज्ञान और अनुभव हमें एनईपी 2020 को प्रभावी ढंग से लागू करने और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेंगे।”
कार्यशाला में देश भर से 100 प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और विभिन्न सत्रों में गहन चर्चा की। यह आयोजन एनईपी 2020 के कार्यान्वयन और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इस कार्यक्रम में विद्वान और विशेषज्ञ, श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के डीन फैकल्टी ऑफ कॉमर्स प्रोफेसर कंचन लता सिन्हा , प्रोफेसर संगीता मिश्रा, प्रोफेसर अधीर कुमार, प्रोफेसर दिनेश शर्मा , श्री श्रीकृष्ण नौटियाल आदि उपस्थित थे।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था शिक्षा के माध्यम से एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना जो न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि पर्यावरण और समाज की दृष्टि से भी टिकाऊ हो। प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं ने एकजुट होकर एनईपी 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए रणनीतियों पर चर्चा की। कार्यशाला में शिक्षक प्रशिक्षण, अनुसंधान, और स्थानीय समस्याओं के लिए वैश्विक समाधान खोजने पर विशेष जोर दिया गया। यह आयोजन भारत की शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार करने और एक ज्ञान-आधारित, पर्यावरण-संवेदनशील समाज के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
कार्यशाला का समापन इस आशा के साथ हुआ कि यहां से प्राप्त अंतर्दृष्टि नीतियों को आकार देने, पाठ्यक्रमों को प्रभावित करने और टिकाऊ सोच वाले नागरिकों की एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने की शक्ति रखती है।

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